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  • अमृता प्रीतम की कविताओं में स्त्री की अस्मिता और विद्रोह

    DOI:DOI:18.A003.aarf.J14I01.010243

डाॅ. मनिन्द्र जीत कौर

Abstract: अमृता प्रीतम आधुनिक हिंदी-पंजाबी साहित्य की वह प्रखर आवाज़ हैं, जिनकी कविताएँ स्त्री-अनुभव, अस्मिता, पीड़ा, प्रेम, विछोह और विद्रोह की अद्वितीय अभिव्यक्ति प्रस्तुत करती हैं। इस शोधपत्र का उद्देश्य उनकी कविताओं में निहित स्त्री-चेतना, स्वाधीनता की आकांक्षा और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध प्रतिरोध के स्वरों का विश्लेषण करना है। अमृता प्रीतम की कविताओं में स्त्री न तो केवल भावनाओं का प्रतीक है और न ही दया-भाव की पात्र; वह संघर्षशील, आत्मनिर्भर, अधिकार-सचेत और विद्रोही व्यक्तित्व के रूप में उभरती है। उनकी कविताएँ ‘मैं’ के माध्यम से स्त्री के भीतरी संसार को उजागर करती हैं-जहाँ प्रेम का स्वाभिमान, वंचनाओं के विरुद्ध विद्रोह और अस्तित्व की खोज प्रमुख रूप से दिखाई देती है। इस शोध के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि अमृता प्रीतम ने स्त्री-अस्मिता को सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मनोवैज्ञानिक संदर्भों में नए अर्थ दिए और स्त्री-मुक्ति की दिशा में एक संवेदनात्मक-लेकिन शक्तिशाली साहित्यिक हस्तक्षेप किया।

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Collaboration Partners
  • Indian Journals

  • Swedish Scientific
    Publications

  • The Universal
    Digital Library

  • Green Earth Research
    And Publishing House

  • Rashtriya Research Institute
    Of New Medical Sciences

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