Latest News

** For Peer Reviewed, UGC App, UGC CARE, Scopus and WoS (M) 8708927219 (W) 9034872290

Categories

QR Code

Visitor Counter

Large Visitor Map

S.No Particular Pdf Page No.
1
  • Empowering India: Challenges and Imperatives in Integrating Human Rights Education for Social Transformation


Irgurala Rajakumar

Abstract: Education helps assimilate and spread knowledge, making it a potent tool for human rights education worldwide. Teachers are crucial to the social inclusion of education for marginalized and depressed children in India. The Indian education system relies on instructors, who are essential to learning. Teachers help students understand human rights and live more humanely. Childhood has the greatest reciprocity, and they can become effective adults and socially responsible citizens. Students' social behaviour is heavily influenced by their teachers and their social surroundings. Human Rights Education may help instil human ideals in their attitudes and social behaviours. Teachers and students must embrace Human Rights education to achieve social cohesion and order. This article discusses the difficulties of cultivating and implementing human rights education in India. This article also advocates for human rights education for Indian students and instructors to improve their moral, physical, social, economic, and spiritual well-being.

1-12
2
  • A Study of Family Climate and Academic Achievement of IX Standard students of Kerala


Dr.Sini V

Abstract: Family and parents played an important role in the study of children especially in the age of adolescence, The aim of this study was to find out the role of family or influence of family environment towards the academic achievement of secondary school students with special reference to IXth standard. A correlation research study using Pearson’s coefficient of correlation and the sample was 405 students of IX standard.

13-21
3
  • Theorizing Caste: An Examination of Ambedkar’s Views


Dr. Preetam

Abstract: Ambedkar had propounded a theory of caste in his research paper entitled “Castes in India: Their Mechanism, Genesis and Development”. It was read before the Anthropology Seminar on May 9, 1916 chaired by Dr. A.A. Goldenweizer at Columbia University, New York. Later it was published in The Indian Antiquary, A Journal of Oriental Research, vol. XLVI – 1917. Ambedkar was convinced that several mistakes were made by students of caste, in the past. For instance, the European students had unduly emphasized the role of color in the caste system. In his belief, those European students, themselves being impregnated with the color prejudices, had readily accepted the color to be the chief factor. In this respect, he agreed with Ketkar who observed: “Whether a tribe or a family was really Aryan or Dravidian was a question which never troubled the people of India, until foreign scholars came in and began to draw the line. The color of the skin had long ceased to be a matter of importance.

22-29
4
  • उत्तराखण्ड का संास्कृतिक परिदृश्य


डाॅ0 भालचन्द सिंह नेगी

Abstract: मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है,उसके समाज की पहचान उसकी संस्कृति से होती है।किसी समाजिक समूह के जी वनयापन की पद्धति को ही संस्कृति कहते हैं।जिस में उस समाज के मनुष्यों का ज्ञान,कला नीति नियम परम्पराये विश्वास, धर्म दर्शन जैसे सभी तत्व सामिल होते हैं मेले और त्यौहार भी इन्हीं परम्पराओं के अंग हैं।

30-34
5
  • महाभारत की ऐतिहासिकता के प्रमाण


कुलदीप सिंह

Abstract: महाभारत भारतीय संस्कृति का अद्भुत महाआख्यान है। 18 पर्वो वाले इस महाग्रन्थ में ‘खिल पर्व‘ (हरिवंश पुराण) सहित लगभग एक लाख श्लोक हैं। इसीलिए इसे ‘शतसाहस्री संहिता‘ भी कहा जाता है। इसे ‘पंचमवेद‘ की संज्ञा भी प्राप्त है। इसके सम्बन्ध में कहा जाता है कि जो कुछ भारत में है वह इसमें उपलब्ध है और जो इसमें नहीं है वह कहीं भी नहीं है। इसमें हजारों कूट श्लोक हैं। इसके आख्यान बड़े मनोहर हैं और तत्वासन बड़ा गम्भीर है।

35-42
6
  • गुप्तोत्तरयुगीन राजपूताना में सूर्याेपासना की परंपरा (प्रतिहारवंश के विशेष संदर्भ में)


प्रताप सिंह

Abstract: सनातन धर्म में पृथ्वी माता की ही भांति सूर्य-चंद्र आदि खगोलीय निकायों की उपासना-अर्चना की सुदीर्घ परंपरा चली आ रही है। आदिवासी समुदायों से लेकर विभिन्न राजवंशों तक सूर्योपासना के प्रकीर्ण संदर्भों से यह विदित होता है कि सूर्यदेव के प्रति जनता की अगाध आस्था रही है। महाभारत ने सूर्यपुत्र कर्ण एवं रामायण में बालसूर्य को फल जानकर हनुमान द्वारा लपक लिए जाने की जनश्रुतियां इस बात का प्रमाण है कि साहित्यकारों की ही भांति राजवंशों में भी सूर्य से जुड़े रहने की तीव्र उत्कंठा रही है।

43-53
7
  • उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के झाँसी जिले के जल संसाधनों की उपलब्धता, समस्याएँ एवं चुनौतियों का भौगोलिक अध्ययन


नीरज कुमार कुशवाहा

Abstract: यह पेपर उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के झाँसी जिले के जल संसाधनों की उपलब्धता, समस्याओं और चुनौतियों के भौगोलिक मूल्यांकन का अध्ययन करता है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र का झाँसी जिला उन क्षेत्रों में अपना स्थान रखता है जो अक्सर सूखे की घटनाओं से ग्रस्त रहते हैं, यह देश विभिन्न रूपों और संरचनाओं में विभिन्न प्रकार की समस्याओं से भरा हुआ है जैसे कि बार-बार सूखा पड़ना, पानी की कमी, खराब फसलें, कम फसलें। उत्पादन और उत्पादकता, निम्नीकृत चारागाह भूमि, भूमि निम्नीकरण, अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, अशिक्षित आम जनता, खनन और वनों की कटाई और अल्प वर्षा। सच तो यह है कि लगभग सभी क्षेत्र पानी को प्राप्त करने की सबसे गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। इस ज्वलंत समस्या के कारण मौजूदा कृषि उत्पादन और उत्पादकता गिरावट की राह पर जा रही है और अपनी पोषण क्षमता खोने के साथ-साथ मिट्टी के क्षरण का कारण भी बन रही है। इसलिए, जल संसाधन विकास कार्यक्रमों को एकीकृत करने की तत्काल आवश्यकता है जो संभावित रूप से इस अर्ध-शुष्क क्षेत्र और इसके पर्यावरण में जल संसाधनों की और गिरावट को रोक सके। वांछित उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए उचित योजना, जल संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग और उनका प्रबंधन, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, संरक्षण और रखरखाव के लिए, प्रभावी जल उपयोग नीतियों को वृहद और सूक्ष्म स्तरों पर लागू किया जाना चाहिए। जल संसाधनों के क्षरण की और जांच करने के लिए, उचित दीर्घकालिक जल संसाधन योजना बनाई जानी चाहिए, और जल संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जल संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग किया जाना चाहिए।\\r\\n

54-74
8
  • GROUNDWATER CRISIS IN RAJASTHAN: ASSESSING DEPLETION RATES AND MITIGATION STRATEGIES


Dr. Kanhaiya Lal Saran

Abstract: In the Indian state of Rajasthan, groundwater, which is an essential resource, is experiencing substantial depletion as a result of a variety of human and environmental causes. In this paper, the current situation of groundwater in Rajasthan is analyzed, with a particular emphasis on the degree of depletion and the alternative remedies that may be implemented to alleviate the issue. For the purpose of providing a thorough picture of groundwater levels, consumption patterns, and recharge rates across the region, the study integrates data from a variety of sources, such as reports from the government, research publications, and field surveys. The most important findings suggest that the worrying decreases in groundwater levels can be attributed to excessive extraction for agricultural, industrial, and household reasons, as well as inadequate rainfall and bad management techniques.

75-93
9
  • A STUDY ON THE PROCEDURE FOR ACCOUNTING AND FINANCE


Preety

Abstract: The fields of accounting and finance are essential to the prosperity and long-term viability of businesses operating in a wide range of industries. For the purpose of this study, the procedural components that are the foundation of efficient accounting and finance processes are investigated. Through an examination of the complexities of financial management, reporting, and analysis, the purpose of this research is to provide insights into improving procedures for improved organizational performance and informed decision-making. The basic concepts of accounting and finance are investigated in this subject through a comprehensive assessment of the relevant literature and case studies.

84-95
10
  • 1857 की क्रांति और उत्तराखंड के स्वतंत्रता सेनानी कालू महरा की भूमिका


श्री राजकमल किशोर

Abstract: कालू महरा उत्तराखण्ड का वह नाम हैं जिन्हें याद करते ही भारतीय स्वतंत्रता के लिये की गयी उस प्रथम क्रांति की यादें उभर के सामने आती हैं, जिसमें पहली बार ब्रिटिश शासन को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये भारतीयों ने एकजुट होकर संघर्ष किया था। जिस प्रकार प्रत्येक महान शख्सियत को पैदा करने में तत्कालीन परिस्थितियाँ जिम्मेदार होती हैं उसी प्रकार वीर कालू महरा को निर्मित करने में भी तत्कालीन परिस्थितियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

135-146
11
  • योग दर्शन में वर्णित साध्य विवेचन का एक अध्ययन


डाॅ. जोगिन्द्र सिंह

Abstract: योगदर्शन व्यवहार प्रधान दर्शन है। इसका सैद्धान्तिक पक्ष सांख्यदर्शन में विस्तृत रूप से विश्लेषित हुआ है। सांख्य दुःख की सार्वभौमिकता को स्वीकार करता है। योग दर्शन दुःखों को दूर करने के उपायों पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण करता है। योग दर्शन के अनुसार भी सांसारिक जीवन दुःखों से परिपूर्ण है। योग की यह मान्यता है कि केवल तार्किक विवेचन से हम दुःखों से अपने को मुक्त नहीं कर सकते हमने पूर्व अध्याय में योग के स्वरूप पर विचार करते हुए दुःखों से छुटकारा पाने के लिए चित्तवृत्तियों के निरोध का विश्लेषण किया है। चिन्मय वह जीव अपने को प्रकृति के विकारों में इस प्रकार उलझा लेता है कि यह अपने सही स्वरूप को नहीं समझ पाता है। विकास क्रम में जब महत् या वृद्ध तत्व विकसित होते हैं, तो उसमें पुरुष का प्रतिबिम्ब पड़ता है। बुद्धि में पड़ने वाले प्रतिभाग्य के साथ प्राणी अपने को तादात्म्य युक्त कर लेता है। यह भ्रान्तिपूर्ण तादात्म्य की स्थिति ही जीव के बन्धन का मूल कारण चतुष्पद और प्रकृति के पार्थोधन होना ही कारण है। जब पुरुष को यह बोध हो जाता है कि वह पुरूष है, तब प्रकृति तथा उसके विकारों से कोई सम्बन्ध नहीं है। तब उसके बन्धन समाप्त हो जाते हैं और यह कैवल्य को प्राप्त कर लेता है।

98-106
12
  • ENHANCING THE ACADEMIC ACHIEVEMENT OF SECONDARY SCHOOL STUDENTS THROUGH BLENDED LEARNING APPROACH IN ENGLISH


Dr. Arunima Kumari

Abstract: The study aimed at studying the effectiveness of blended learning Approach in improving Secondary school students' achievement in English. Secondary school of Jamshedpur town in East Singhbhoom District were selected as samples by using Simple random sampling technique. The sample of the study was consisted of (100) students out of which male (50) and female students (50), who were divided into two groups: experimental and control. The experimental group was taught through using the blended learning approach while the control group studied the same units through the traditional method.

109-127
13
  • Folk Beliefs of the Koch Community of Assam: A Descriptive Study


DR. INDRA MOHAN HAZARIKA

Abstract: Assam is the meeting place of different castes and tribes. According to the tribal structure, these tribes are known as The Nordics, Mongols, Austrics and Dravidians. Most of the people of Assam are Mongolian or Tibeto-Burmese, along with Nordic or Aryan origin. The Kochs are a Mongolic population that is similar to the Bodo, Rabha, Dimasa, Karbi, Tiwa, Garo, Mising, etc. The Koch have lived in different states of India and are scattered across Nepal and Bangladesh. The Tintekia, Hargiya, Wanang and Margan sections. Among the various sections of the Koch, some of them still retain the original language, culture and folk literature. Like each of the Mongolian communities in Assam having a distinct socio-cultural ethos, the Koch too have their own socio-cultural ethos. These folk beliefs, which are prevalent in the socio-cultural traditions, are introduced to the social customs of the Koch as well as the characteristics of their own ethnicity. These beliefs are birth, death, marriage, religion, nature, birds etc. Not only can these folk beliefs play a major role in the creation of the social system of the Koch people, they may also have contributed to the nutrition of Assamese folk beliefs. There has not been a scientific systematic study of these folk beliefs of the Koch people. This is the reason why the folk beliefs of the Koch community need to be studied. Therefore, the prime concern of this paper is to try to recover and discuss various aspects of the folk beliefs associated with Koch's socio-culture. For this purpose, the topic 'Folk Beliefs of the Koch Community of Assam: A Descriptive Study' has been selected as the subject of the paper.

128-134
Collaboration Partners
  • Indian Journals

  • Swedish Scientific
    Publications

  • The Universal
    Digital Library

  • Green Earth Research
    And Publishing House

  • Rashtriya Research Institute
    Of New Medical Sciences

Indexing By