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महादेवी वर्मा जी की काव्य कृत्ति सांध्य गीत का अध्ययन
डॉ सिद्धि जोशी
Abstract:
महादेवी वर्मा जी मूलतः एक कवयित्री तथा छायावाद के चार आधार स्तम्भों में से एक के रूप में प्रसिद्ध थीं। करुणा एवं भावुकता उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं। साहित्य को इनकी देन मुख्यतया एक कवि के रूप में है, किन्तु इन्होंने प्रौढ़ गद्य लेखन द्वारा हिन्दी भाषा को सजाने-सँवारने तथा अर्थदृगाम्भीर्य प्रदान करने में जो योगदान किया है, वह भी प्रशंसनीय है। उनकी रचनाएँ सर्वप्रथम 'चाँद' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुईं। तत्पश्चात् उन्हें एक प्रसिद्ध कवयित्री के रूप में ख्याति प्राप्त हुई। महादेवी वर्मा की कविताओं में हृदय को मथ देनेवाली जितनी हृदय विदारक पीड़ाएँ चित्रित की गई हैं, वे अद्वितीय मानी जाती हैं। उनकी सूक्ष्म संवेदनशीलता, परिष्कृत सौंदर्य रुचि, समृद्ध कल्पना-शक्ति और अभूतपूर्व चित्रात्मकता के माध्यम से प्रणयी मन की स्वर लहरियाँ गीतों में व्यक्त हुई हैं। आधुनिक हिन्दी काव्य में शायद ही कोई उनकी तुलना कर सके। अपनी अंतर्मुखी मनोवृत्ति एवं नारीसुलभ गहरी भावुकता के कारण उनके द्वारा रचित काव्य में रहस्यवाद, वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल तथा मर्मस्पर्शी भाव मुखरित हुए हैं। महादेवी का गद्य-साहित्य भी कम महिमामय नहीं है। उनके चिन्तन के क्षण, स्मरण की घड़ियाँ तथा अनुभूति और कल्पना के पल गद्य-साहित्य में भी साकार हुए हैं। उनकी आस्था, उनका तप, उनकी उग्रता तथा संयम, और दृष्टि की निर्मलता ने मिलकर उनके गद्य को हिन्दी का गौरव बना दिया है। इस प्रकार, चाहे पद्य हो या गद्य, महादेवी वर्मा जी हिंदी साहित्य में उच्चतम स्थान की अधिकारिणी हैं। उनकी लेखनी ने न केवल साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि पाठकों के मन में एक स्थायी छाप छोड़ी है।