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1
  • AUTOBIOGRAPHY OF AN UNKNOWN INDIAN: A CRITIQUE OF CONTEMPORARY SOCIETY


Isha Parashar

Abstract: Nirad C. Chaudhuri has always been accused by the critics for being defensive for the ways of the Britishers that they used during the British rule in India.


1-8
2
  • LAI HARAOBA: AN ART OF LIVING CULTURE


Leitanthem Santosh Singh

Abstract: Culture is the only one of its kind which is unique to Man as a social being. It reveals the nature of individual, group or community.


9-16
3
  • NATASANKIRTANA AS APURVARANGA


Dr. M. Thoiba Singh

Abstract: Whenever any Subha Karma is carried out, in order to please the gods and goddesses, dance and music accompanied by Pung (Mrdanga) and Kartals (Cymbals) are offered to pray to them.


17-24
4
  • An Analytical Study of Chronotope Technique of Literature in Ashiwin Sanghi’s The Krishna Key


Vasava Mithunbhai Gambhirbhai

Abstract: This study looks into the features of time and space in a postmodern Indian English novel. It is crucial to understand the meaning of temporal and special indicators and references in order to understand a narration. This study aims to explore the portrayal of Chronotope in the select novel. Bakhtin's literary theory of Chronotope is chosen for this study because it is yet to be used


60-66
5
  • Teaching of English Poetry at Under-graduate Level with Special Reference to the Rural Colleges of Nalbari District


Manoj Kumar Kalita

Abstract: In our country English is used as a second language and therefore, to teach the language, English poetry has been considered as one of the best medias and, it has therefore been taught and learnt compulsorily at all levels. While talking about teaching English poetry, we should be clear that the objective of teaching this form of literature is not merely to make the learners understand the content of the poem but most prominently to teach different language skills i.e., receptive (reading, listening) and productive (writing and speaking) as well as other sub-skills of the language


67-73
6
  • ENGLISH FOR SPECIFIC OR SPECIAL PURPOSES: ENGINEERING


M. Sridhar Kumar

Abstract: This paper deals with the nuances of English language used in the domain of Engineering.


52-59
7
  • व्याकरणशास्त्रीय संज्ञाएँ : व्याकरण-प्रवेशद्वार


डॉ० भवानीशंकर शर्मा ‘महाजनीय’

Abstract:


86-93
8
  • पारंपरिक बिम्बों का अनुशीलन


डॉ. शिवदयाल पटेल

Abstract: पारम्परिक बिम्ब परोक्ष अनुभव से सम्बद्ध होते हैं। इन बिम्बों का सम्बन्ध अचेतन मन के साथ होता है। डॉ. नगेन्द्र लिखते हैं- “पदार्थ के अभाव में व्यक्ति का प्रत्यक्ष ज्ञान भी मिथ्या प्रत्यक्ष कहलाता है। यह ज्ञान प्रत्यक्ष रहने पर भी मिथ्या या अवास्तविक होता है। अनेक प्रबल इच्छाएँ जो दमित होकर अवचेतन में जाकर छिप जाते हैं, मन और शरीर की व्याधियों के दुष्प्रभावों के साथ मिलकर इन्द्रियों की क्रिया में इस प्रकार विकार उत्पन्न कर\\r\\nदेती है कि बाह्य उद्दीपन के अभाव में भी उनका (बाह्य उद्दीपन का) प्रत्यक्ष ज्ञान होने लगता है। पारम्परिक बिम्बों के निर्माण का आधार मन में उत्पन्न होने वाली वासनाएँ है। मनुष्य की दमित वासनाएँ उसके अवचेतन में में जाकर संकलित हो जाती है। यहाँ से ये नाना प्रकार के छद्म रूप धारण कर दिवास्वप्न तन्द्रा-स्वप्न आदि में व्यक्त होते रहती है। विकृति जब गहरी और अधिक स्थायी हो जाती है, तो ये दमित वासनाएँ ही छद्म रूपों में अभिव्यक्त होती है। पारम्परिक बिम्बों का वर्गीकरण निम्नलिखित रूप में किया गया है-\\r\\n


122-125
9
  • कुमार गन्धर्व: कबीर-गायन परम्परा के अमर गायक


आरती पाण्डेय

Abstract: कबीर-गायन की परम्परा कबीर के समय से ही निर्बाध रूप से चली आ रही है। स्वयं कबीर ने भी तब अपने साखियों और उलटबासियों के वाचन से बड़े-बड़े समूह को प्रभावित किया था। कबीर के बाद तो उनकी साखियों और उलटबासियों के गायन की परम्परा और भी समृद्ध हुई। कबीर-गायन की इस परम्परा में पंडित कुमार गन्धर्व का नाम खूब प्रसिद्ध हुआ। भारत की शास्त्रीय गायन की परम्परा में उन्होंने कबीर को स्थापित करने का काम किया; सिर्फ स्थापित ही नहीं बल्कि शास्त्रीय गायन में लोकधुनों के सामंजस्य के साथ कबीर-गायन और साथ ही साथ भजन-गायन की एक नई शैली भी विकसित की।


114-121
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